विश्व हिन्दू महासंघ - परिचय

विक्रम संवत 2037 (12 अप्रैल 1981) को नेपाल के पियगंज, पीलिया भट्ट में नेपाल नरेश श्री 5 महाराजाधिराज वीरेन्द्र वीर विक्रम शाहदेव द्वारा प्रथम अंतरराष्ट्रीय हिंदू सम्मेलन का उद्घाटन किया गया। इस सम्मेलन का उद्देश्य एक सशक्त, स्वायत्त और धर्म तथा समाज हितैषी अंतरराष्ट्रीय संगठन की नींव रखना था।

बाद में, विक्रम संवत 2040 (सन् 1984) में इस संगठन को औपचारिक रूप से विश्व हिंदू सम्मेलन के नाम से पंजीकृत किया गया। कुछ समय बाद इसका नाम विश्व हिंदू संघ कर दिया गया। अंततः, विक्रम संवत 2044 (सन् 1988) में काठमांडू में आयोजित दूसरे विश्व हिंदू सम्मेलन में इसे विश्व हिंदू महासंघ नाम देने का निर्णय लिया गया।

विश्व हिंदू महासंघ: एक परिचय

  • संपूर्ण विश्व में फैले हिंदू धर्म और संस्कृति के अनुयायियों को एकजुट करना,
  • हिंदू संस्कृति और परंपराओं की रक्षा करना,
  • "वसुधैव कुटुंबकम्" (संपूर्ण विश्व एक परिवार है) के सिद्धांत को बढ़ावा देना,
  • और विश्व-भाईचारे, शांति, कल्याण तथा आपसी सहयोग को प्रोत्साहित करना।
इस संगठन की प्रेरणा ब्रहमलीन संत अवैधनाथ जी रहे, जिन्होंने इसके गठन की नींव रखी।

महिला नेतृत्व की ऐतिहासिक पहल

विश्व हिंदू महासंघ के 44 वर्षों के इतिहास में पहली बार वर्ल्ड हिंदू फेडरेशन इंटरनेशनल की अध्यक्ष पद पर श्रीमती अस्मिता भंडारी को नियुक्त किया गया। यह एक ऐतिहासिक और प्रेरणास्पद क्षण रहा। अस्मिता भंडारी जी ने सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार और सामाजिक एकता के लिए कई सभाओं को संबोधित किया, आयोजन किए और संगठन को वैश्विक स्तर पर नई ऊँचाइयों पर पहुँचाने का कार्य किया।